Friday, June 8, 2018


"हाँ सब कुछ तो वैसा ही है"



हाँ सब कुछ तो वैसा ही है 
आसमान,ज़मीन,पंछी,नदी वैसे ही उतर रही है पहाड़ों से 
लोग भाग रहे है अपने सपनों के पीछे मैं भी उसी दौड़ का 
एक हिस्सा हूँ शायद 
लोग रोज़ उठते है अपने बिस्तर से अपनी किस्मत को सुबह देखने के साथ
हाँ, शायद मेरा ये ख़्वाब कभी पूरा ना हो
ख़ैर, सब निकल रहे है सुबह-सुबह
बस,मैट्रो से अपने दफ़्तर की ओर
मैं भी तो निकला ही हूँ ना
तुमने ही कहा था अपने सपने पूरे करो
हाँ, शायद हो ही जायें वो भी कुछ ही सही
मेरे लिए तुम्हारा जिस्म कभी मायने नहीं रखता
"
तुम्हारा" होना ज़्यादा मायने रखता है
तुम नहीं रहोगी तो उन कहानियों का क्या मतलब
जो मैं रातों को लिखता हूँ.
ख़ैर सब कुछ वैसा ही है बस तुम नहीं हो
और घुप्प अँधेरा है मौत सी ख़ामोशी के साथ I

"अच्छा सुनो ना,"
कहीं चलते है,
कहीं पर भी,
किसी भी रास्ते पर.. 

जहाँ खूबसूरत मोड़ ना हो
वहाँ किसी का जोर ना हो.. 
जहाँ कपड़ों पर रंग ना हो
वहाँ वादों पर संग ना हो..

जहाँ चूल्हे का धुंआ हो,
तुम वो स्वेटर पहनो जो मैंने बुना हो..

जहाँ तुम्हे सिंदूर लगाना ज़रूरी ना हो,
वहाँ मेरे बिना तुम्हारी ज़िंदगी अधूरी हो..

जहाँ हम चाँद को एक-साथ देखते हो,
वहाँ सर्द रातोंं में अलाव यूँ सेंकते हो..

"
अच्छा सुनो ना,"

मैं चल निकला हूँ,
अभी नहीं बस कल निकला हूँ..
वादा है मिलेंगे कभी,
अपने सपने सिलेंगे कभी..


27/2/2014

शायद ये जानते हुए की.... शायद ये जानते हुए की जानकार कुछ नहीं होगा मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ की तुम कैसी हो, खाना टाइम पर खा लेती होना ...