Wednesday, January 27, 2016

हम लोग उस दिन क़रीब २ घंटे तक लगातार बातचीत करते रहे, मैं उन्हें तरह-तरह से ये समझाने की कोशिश करता रहा की मैं उनसे कितना प्यार करता हूँ ! और वो बस हँस देती थी ! मैं बहुत खुश रहता था की वो हँसती है मेरी बातों पर, लेकिन शायद वो मुझपर हँसती होगी !
हम दोनों ख़ुश थे और हर प्यार करने वालों की तरह भविष्य के सपने देखते थे, की एक दिन ऐसा होगा और दूसरे दिन वैसा ! तुमने मुझमें दुबारा ज़िंदगी भर दी थी, लेकिन तुम उसे छीनना भी जानती थी शायद ! 
उसने कहना शुरू किया, सुनो, मुझे तुमसे बहुत प्यार है, लेकिन मैं बयाँ नहीं कर सकती कितना ! मैंने तुम्हारी हर बात पर यक़ीन कर लिया ! हम सभी अपनी ज़िंदगी में बिख़र जाते हैं कभी-कभी, हाँ तुम्हारे अचानक जाने के फ़ैसले से मैं बिख़र गया था !

टूटन जानती हो तुम, शायद नहीं, जानना चाहती हो !

#प्रवीण
मैं रो देता हूँ आमतौर पर, कभी भी रो देता हूँ ! कोई मुझपर हँसे या किसी और पर ! कभी किसी फ़िल्म का कोई सीन देखकर, कभी अपनी मजबूरियों को देखकर, कभी किसी क़िताब में कुछ पढ़कर !
अपनी नाकामियों पर और अपनी छोटी कामयाबीयों पर भी !
कभी किसी बच्चे को देखकर,कभी मौत देखकर, मैं रो देता हूँ !
सोचता हूँ की सबको लगता होगा कमज़ोर आदमी है, और आदमी को रोना नहीं चाहिए ! मुझे लगता है रोना चाहिए फूट-फूट कर रोना चाहिए, माँ की गोद, बीवी के कंधों पर, माशूक़ के सामने फफक-फफक कर रोना चाहिए !
ख़ूब रोना चाहिए ज़िंदा होने की निशानी यही है !

शायद ये जानते हुए की.... शायद ये जानते हुए की जानकार कुछ नहीं होगा मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ की तुम कैसी हो, खाना टाइम पर खा लेती होना ...