Tuesday, March 8, 2016


मेरे साहिर, प्यारे साहिर 

 आज साहिर साहब की यौम-ए-पैदाईश का मुबारक़ दिन है !      
आज साहिर साहब होते तो अभी इस वक़्त क्या कर रहे होते, इस माहौल में क्या लिख रहे होते, किन लोगो से मिल रहे होते और कैसे दिखते ! ये कुछ सवाल हैं जो मैं साहिर साहब को लेकर फ़िलहाल सोचता हूँ !
दिल बहुत बेचैन रहता है, सोचता है ज़िंदा तो है तू, क्या सोचता है ज़िंदा है तू !
ये मुल्क, उसके लोग, उसका ढांचा एक तय रूप में काम करता है, जहाँ ना दिल की कीमत है और ना जान की ! जब भी बँटवारे और उसके दर्द के बारे में पढ़ता हूँ रो पड़ता हूँ, लगता है, क्या ज़रूरी था इतना क़त्ल-ए-आम करना, वो पड़ोसी जो सैंकड़ों बरसों से साथ रह रहे हो, उन्हें अचानक ऐसा क्या हुआ जो एक-दूसरे के ख़ून के प्यासे हो गए ! साहिर ऐसे ही माहौल में पाकिस्तान को अलविदा कह आये, उन पर हुकुमत की नाफ़रमानी का इल्ज़ाम लगता रहा !
साहिर और सिनेमा मेरे लिए हमेशा से खाद-पानी का काम करते रहे हैं ! ज़िंदगी के कड़वे सच और सच्चाई से मुलाक़ात लगातार ज़ारी है, सोचता हूँ एक दिन ये हो जाऊँगा, वो हो जाऊँगा, ऐसा सिनेमा बनाऊंगा ऐसी कहानी लिखूंगा नहीं तो ऐसा गीत लिख दूंगा !
लेकिन ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है !
साहिर की तारीफ़ और उनपर कुछ भी कहने का ना बूता है और ना मैं उसके क़ाबिल हूँ, और इसका एक बहुत बड़ा कारण है, साहिर ने अपने हर लफ्ज़ में उस इंसानी भावना को छू लिया जिसे करने के लिए अव्वल दर्ज़े का कलाकार होना ही काफ़ी नहीं है, इन सबके साथ एक अच्छा इंसान भी होना पड़ता हैं !
साहिर ने अपनी कलम से प्यार की नई परिभाषा गढ़ी है !

उदाहरणत:  ना मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की, ना तुम मेरी तरफ़ देखो ग़लतअंदाज़ नज़रों से !         हाय, मेरे साहिर तुमने इस दुनिया में जहाँ क़दम-क़दम पर सिर्फ ग़म और दर्द अपनी आग़ोश में ले लेना चाहता है, वहां तुमने मुस्कुराने के कुछ पल तो दिए !
मैं तुमसे हर पल सीखता हूँ, की ज़िंदगी को कैसे जिया जाए ! मैंने तुमसे ही प्यार करना सीखा है !
साहिर तुम्हारा नाम सुनकर पता नहीं क्यूँ संज़ीदा हो जाता हूँ, अच्छा है आप नहीं हैं इस दुनिया में, ये आपके क़ाबिल तब भी नहीं थी और अब भी नहीं है !  
 
साहिर को शायद तय ढर्रो पर चलना हमेशा नागवार गुज़रा जो उनके हर गीत में साफ़ झलकता है, अमृता और सुधा से उनके रिश्ते जगज़ाहिर हैं, लेकिन क्या सब कुछ इतना आसान रहा होगा !
हम किसी की भी निज़ी ज़िंदगी के ऊपर पलभर में ही फ़ैसला सुना देते हैं, लेकिन क्या रिश्ते ऐसे ही चलते हैं !
खैर साहिर और उनका प्यार अमर है, उनपर जान छिड़कने वाले आज भी हैं ! साहिर ने हिंदी सिने जगत को बेशुमार नगीनों से सराबोर किया है ! उनका एक-एक लफ्ज़ आने वाले कई बरसों तक लोगों के कान में मिठास घोलता रहेगा !    




                 

शायद ये जानते हुए की.... शायद ये जानते हुए की जानकार कुछ नहीं होगा मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ की तुम कैसी हो, खाना टाइम पर खा लेती होना ...