Saturday, April 23, 2016

स्मृतियां

ऐसा लग रहा है, मैं चल रहा हूँ पानी पर ! वो पानी जो आँख से टपकता है लहू बनकर ! दिमाग़ में बहुत सारी यादें एकदम से कौंधती हैं ना, हर बात याद आ जाती है ! अपने आप पर शक़ होने लगता है, की मेरा अस्तित्व क्या है !
किसी से कोई शिकवा नहीं, ना किसी से कोई राबता है, बस एक चिराग़ है जो जल रहा है ! ये सारी घटनाएं मन में अपनी जगह बना चुकी है, और स्मृतियां जो हैं, वो कभी आवाज़ बनकर सुनाई देती है ! ये स्मृतियां इतनी तीव्र गति से आती-जाती है, की एक वक़्त ऐसा लगता है,
किसी टाइममशीन से मैं अनंत की यात्रा पर हूँ ! इस बीच वो सभी चेहरे एक-एक करके सामने आ जाते हैं, जिसने दुनिया थी हमारी !
#प्रवीण

शायद ये जानते हुए की.... शायद ये जानते हुए की जानकार कुछ नहीं होगा मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ की तुम कैसी हो, खाना टाइम पर खा लेती होना ...