Saturday, February 6, 2016

याद है ये कौन सी जगह है.?
याद भी कैसे होगा
बहुत कुछ है जिसे तुम भूल चुकी है
हाँ मगर तुम्हें ये ज़रूर याद रहता है
बहुत दिनों बाद अचानक से ये पूछ लेना "कैसे हो"
वैसा ही हूँ जैसा तुम रह-रह कर छोड़ कर चली जाती हो 
और फिर अचानक किसी दिन 
ज़िन्दगी के किसी सवाल की तरह सामने आ जाती हो 
वैसे बता दूं, ये वही जगह है जहाँ चालीस दिन का चिल्ला होना तय हुआ था
तुम्हारा और मेरा ठिकाना लाहौल-स्पीती, जहाँ हम दोनों अलाव पर इश्क़ चढाने वाले थे पकाने के लिए 
खैर, ज़िंदा तुम भी हो और मैं भी (हूँ क्या) 
#प्रवीण      
एक बात कहूँ..
छोड़ो क्या रखा है बातों में.?
अंधेरों में ज़िंदा रहो,
ज़रूरी नहीं रौशन हुआ जाये मौकापरस्तों की तरह..
मैं नाक़ाम अच्छा हूँ खोखला कामयाब होने से.
तुम संभालो अपने खूबसूरत से वक़्त को,
मारो मेरे सीने में ख़ंजर और जश्न मनाओ अपनी कामयाबी का,
तुम गीत बुनो अपने दोस्तों के संग की तुम कामयाब हुए,
आग लगो दो तुम अपनी इस खोखली दुनिया में..

पर एक बात कहूँ,
छोड़ो क्या रखा है बातों में.?
#प्रवीण 
"गुस्ताख़ चश्मा"
चाँद कुछ दिनों से धुँधला सा दिख रहा है
"
चश्मा टूट गया है"
शायद ज़िंदगी का भी
दिनभर थक कर घर आने के बाद जब
वो कुछ लिखने की कोशिश करता
उसे ऐसा लगता चाँद उसकी खिड़की से
चार मीटर आगे खिसक गया है
बस अँधेरे कमरे में बैठा
चारों तरफ का धुँआ कभी-कभी उसकी
आँखों और आत्मा को झुलसा देता है..
#प्रवीण 
यहाँ सब कुछ वैसा नहीं रहता जैसा हम सोच रहे होते हैं, तुमनें उम्मीद खो दी है क्या ! मैं अब भी देखता हूँ सूर्य को सूर्यास्त तक, और इंतज़ार करता हूँ इसी यक़ीन पर की वो सुबह फिर उग आएगा ! कुछ उम्मीदें ख़त्म नहीं होनी चाहिए, मैं तुम्हें हर जगह पाता हूँ ! तुम सह रहे हो, कोई बात नहीं सहना अच्छी बात है, शायद तुम चुने गए हो ! वो सुबह देखने के लिए जहाँ तुम्हेँ होना है मुस्कुराते हुए ! तुम अपने भीतर संगीत पैदा करो जैसे एक माँ जन्म देती है अपनी औलाद को तुम भी जन्म देना उस माहौल को जहाँ बस खुशियाँ हो ! चाहे रास्ते कैसे भी हो तुम आगे बढ़ते जाना, निरंतर !

शायद ये जानते हुए की.... शायद ये जानते हुए की जानकार कुछ नहीं होगा मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ की तुम कैसी हो, खाना टाइम पर खा लेती होना ...