Friday, June 8, 2018


"अच्छा सुनो ना,"
कहीं चलते है,
कहीं पर भी,
किसी भी रास्ते पर.. 

जहाँ खूबसूरत मोड़ ना हो
वहाँ किसी का जोर ना हो.. 
जहाँ कपड़ों पर रंग ना हो
वहाँ वादों पर संग ना हो..

जहाँ चूल्हे का धुंआ हो,
तुम वो स्वेटर पहनो जो मैंने बुना हो..

जहाँ तुम्हे सिंदूर लगाना ज़रूरी ना हो,
वहाँ मेरे बिना तुम्हारी ज़िंदगी अधूरी हो..

जहाँ हम चाँद को एक-साथ देखते हो,
वहाँ सर्द रातोंं में अलाव यूँ सेंकते हो..

"
अच्छा सुनो ना,"

मैं चल निकला हूँ,
अभी नहीं बस कल निकला हूँ..
वादा है मिलेंगे कभी,
अपने सपने सिलेंगे कभी..


27/2/2014

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